गुरुवार, 14 अगस्त 2014

साहेब-हर्ष संवाद

प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश के विभिन्न राज्यों में फीता काटने तथा अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के उद्देश्य से अनवरत यात्राओं तथा हाल के 'नेपाल-भूटान', ब्राजील, जर्मनी इत्यादि की थकाऊ-पकाऊ दौरे से बोर होकर मोदी जी एक दिन लगभग खानाबदोश-सा फीलिंग लिए अपने आवास में आराम फरमा रहे थे। आप तो जानते ही हैं कि खाली दिमाग में कौन वास करता है सो साहेब के मन में कुछ करने की सूझी। अब साहेब कुछ करने की सोचें और वो तूफानी न हो, ऐसा कैसे हो सकता है ! पहले से ही असंख्य फोटो-सेशन से ऊब चुके साहेब के मन में सहसा एक आईडिया (बिड़ला वाली नहीं) रुपी बिजली (रिलायंस पावर या अडानी ग्रुप वाली नहीं) कौंधी कि क्यों न अपने सिपहसालारों की एक दरबार  बुलाई जाये। इससे उनका मन भी कुछ बहल जाएगा और साहेबगीरी का रौब झाड़ेंगे सो अलग ! ऊपर से साहेब ने अपने 'येल-रिटर्न' मंत्री की विद्वता के खूब चर्चे भी सुन रखे थे, इसलिए वे यह दरबार लगाने को और अधिक उत्सुक हो उठे। लेकिन ये सोचकर कि दरबार में "चर्चा का विषय" क्या हो, साहेब थोड़ा ठिठके और कुछ देर तक सोचने लगे। चूँकि हाल में ही वो पशुपतिनाथ मंदिर में दिल खोलकर दान और पूजा कर आये थे तो अभी तक धार्मिक-दार्शनिक मोड में ही थे | इसलिए उन्होंने तय किया कि कुछ यक्ष-युधिष्ठिर टाइप संवाद कर लेंगे। वैसे भी बालपन से ही दबंग रहे साहेब ने एक बार जो कमिटमेंट कर लिया कि दरबार लगेगा तो फिर साहेब अपनी भी नहीं सुनते, "चर्चा के विषय" की क्या औकात जो उन्हें ऐसा करने से रोक ले !
अतः दरबार जैसा हुआ करता है वैसा ही लगाया गया। अब साहेब को स्टेज पर चढ़कर बोलने की लत लग चुकी थी इसलिए दरबार जहाँ लगायी जानी थी उस जगह के हिसाब से एक स्टेज तैयार किया गया। मंत्रियों को तलब किया गया। मंत्रीगण हाजिर हुए | तत्पश्चात डिज़ाइनर परिधानों से आपादमस्तक सुसज्जित साहेब पधारे तथा मंचासीन हुए। मंत्रियों ने एक जोर का नमोकारा लगाया  और अपने-अपने स्थान पर बैठ गए| साहेब ने अपने करकमलों में कुछ कागजात पकड़ रखे थे। उन कागज़ों में कुछ और नहीं वही प्रश्न अंकित थे जो कभी यक्ष ने युधिष्ठिर से किये थे। विदित हो कि साहेब खुद टेकी-नेटीजन हैं इसलिए इन प्रश्नों को वो स्वयं ही इंटरनेट से चेंप लाये थे, किसी पुदीनानाथ खतरा की मदद नहीं ली। आखिरकार दरबार शुरू हुआ। सबसे आगे की पंक्ति में मटर  जैसी डील-डॉल वाले हर्षवर्धन जी विराजमान थे | साहेब "सेक्स-एजुकेशन" पर हर्षवर्धन जी के प्रवचन से तो पहले से ही प्रभावित थे सो उन्होंने महामेधाशाली डाक साब से ही यक्ष-प्रश्न करने का सिलसिला शुरू किया।

प्रस्तुत हैं उस नमो-हर्ष संवाद के कुछ अंश ::      

साहेब- मनुष्य का साथ कौन देता है ?
हर्ष (थोड़ा झिझकते हुए) – जीवनसाथी
(साहेब की मनोदशा का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं)

साहेब - यशलाभ का एकमात्र उपाय क्या है ?
हर्ष (तपाक से) - फोटोशॉप लघु उद्योग
साहेब - हा हा सत्य वचन जिन लोगों को नहीं पता  वो पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें


साहेब - विदेश जानेवाले का साथी कौन होता है ?
हर्ष (कुछ देर सोचने के बाद) – ट्रांसलेटर
साहेब - यू आर सो इंटेलीजेंट !

साहेब - हवा से तेज कौन चलता है ?
हर्ष (थोड़ा डरते हुए) - सच कहूँ तो आपकी जुबान
साहेब - आय टेक माय कॉम्प्लीमेंट बैक

साहेब  - अच्छा बताओ किस चीज़ के खो जाने पर दुःख नहीं होता ?
हर्ष (कॉंफिडेंट होकर) – एजेंडाजैसे अपना राम मंदिर वाला या फिर दिल्ली में 70 मैनिफेस्टो वाला
साहेबहम्म्म .

साहेब - ब्राह्मण होना किस बात पर निर्भर है ? जन्म पर, विद्या पर या शीतल स्वभाव पर ?
हर्ष (थोड़ा झुंझलाकर ) -  इनमें से कोई नहीं। सुब्रमनियन स्वामी अपने अंदर  की तमाम वेस्टेड अथॉरिटी के आधार पर जिसे ब्राह्मण होने का सर्टिफिकेट देंगे , केवल वही ब्राह्मण होगा।
साहेब - सचमुच। मैं बचपन से ही ब्राह्मण बनना चाहता था ! स्वामी जी ने मुझे ऐसे ही ब्राह्मण घोषित किया। 

साहेब - अच्छा ये बताओ सर्वोत्तम लाभ क्या है ?
हर्ष - उस कुर्सी पर आसीन होना जिसपर आप विराजमान हैं
(साहेब मन में यस्स बी कैन’.)

साहेब - धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ?
हर्ष - संघ.. हाँ वही... बन्दे हैं हम जिसके, हमपे जिसका जोर
साहेबहम्म्म .


साहेब - कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती ?
हर्ष (धीमे स्वर में) - अम्बानी-अडानी जैसे। ऐसी मित्रता चुनाव के साथ भी और चुनाव के बाद भी बदस्तूर चलती है।
साहेबश्श्श्श्श्श्श्श्श….

    
साहेब - जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
हर्ष - उल्लू बनाविंग;  हम हर चुनाव में देश की जनता को उल्लू बनाते हैं कि विकास होगा.. विकास होगा विकास होगा और हर चुनाव में जनता इसे सीरियसली लेकर हमें ही वोट देती है। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है ?
साहेब - हे हे लोलवा !


साहेब - जल से पतला क्या है ?
हर्ष- अच्छे दिनों के आगमन की उम्मीद
(साहेब मन में :: ये मटरू मरवाएगा)

साहेब - कौन भूमि से भारी है ?
हर्ष - निस्संदेह रूप से हमारे गडकरी जी
तभी साहेब ने एक जोरदार ठहाका लगाया और दरबार समाप्त करने की घोषणा की।