एक बरस बीत गया
साहेब मॉडल मर्मज्ञ तुम कश्मीर में पाक झंडे
विकास कहाँ हुआ गुम लहराते अब एनी डे
गवर्नेंस गाड़ी का पहिया देश नहीं झुकने दूंगा
आशाओं के विपरीत गया कहाँ वो तेरा गीत गया
एक बरस बीत गया । एक बरस बीत गया ।
तेरे वो गगनभेदी नारे जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी
कहाँ हुए लुप्त सारे दो ध्वज-विधान वहीं जी
अच्छे दिन की प्रतीक्षा में सिद्धांतों की आहुति दी
ग्रीष्म, मॉनसून, शीत गया और मुफ़्ती मनमीत भया
एक बरस बीत गया । एक बरस बीत गया ।
महंगाई है डरा रही चीन में गलत नक्शा दिखा
इकॉनमी चरमरा रही कहो कि क्या ये डंका बजा
आये दिन रुपैये को बस भाषण, भ्रमण, सेल्फ़ी में
विदेशी डॉलर पीट गया। पूरा वर्ष व्यतीत गया।
स्मार्ट सिटी का खाका नहीं खाली मन की बात करते हो
काले धन का पता नहीं नित नयी कहानी गढ़ते हो
वादे-जुमलों के बीच भानुमति का पिटारा भी
जुमला जंग जीत गया अब तुमसे भयभीत हुआ
एक बरस बीत गया। एक बरस बीत गया।
किसान सूली चढ़ रहे आठ सौ करोड़ झाड़
रोजगार नहीं बढ़ रहे करी खूब पीआर प्रचार
जनता की झंड हुई राग दरबारी गा-गाकर
अडानी अनुगृहीत हुआ जर्नलिज्म भी पीत भया
एक बरस बीत गया । एक बरस बीत गया ।
साहेब मॉडल मर्मज्ञ तुम कश्मीर में पाक झंडे
विकास कहाँ हुआ गुम लहराते अब एनी डे
गवर्नेंस गाड़ी का पहिया देश नहीं झुकने दूंगा
आशाओं के विपरीत गया कहाँ वो तेरा गीत गया
एक बरस बीत गया । एक बरस बीत गया ।
तेरे वो गगनभेदी नारे जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी
कहाँ हुए लुप्त सारे दो ध्वज-विधान वहीं जी
अच्छे दिन की प्रतीक्षा में सिद्धांतों की आहुति दी
ग्रीष्म, मॉनसून, शीत गया और मुफ़्ती मनमीत भया
एक बरस बीत गया । एक बरस बीत गया ।
महंगाई है डरा रही चीन में गलत नक्शा दिखा
इकॉनमी चरमरा रही कहो कि क्या ये डंका बजा
आये दिन रुपैये को बस भाषण, भ्रमण, सेल्फ़ी में
विदेशी डॉलर पीट गया। पूरा वर्ष व्यतीत गया।
स्मार्ट सिटी का खाका नहीं खाली मन की बात करते हो
काले धन का पता नहीं नित नयी कहानी गढ़ते हो
वादे-जुमलों के बीच भानुमति का पिटारा भी
जुमला जंग जीत गया अब तुमसे भयभीत हुआ
एक बरस बीत गया। एक बरस बीत गया।
किसान सूली चढ़ रहे आठ सौ करोड़ झाड़
रोजगार नहीं बढ़ रहे करी खूब पीआर प्रचार
जनता की झंड हुई राग दरबारी गा-गाकर
अडानी अनुगृहीत हुआ जर्नलिज्म भी पीत भया
एक बरस बीत गया । एक बरस बीत गया ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें