गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

कानून की पतंग

याद है गत साल,
हमने साथ में
उड़ाई थी पतंगें,
अब हर साल
उड़ाया करेंगे !
और कानून के हाथ से
लंबा है अपना ठेंगा
ये सबको दिखाया करेंगे !
पता है,
हमने खुद से बनाई
थी ये पतंगें !
पूछो कैसे,
वो ऐसे कि हमने दिए
कानून की किताब के
पन्ने फाड़,
सबूतों को
हुकूमत की आंच पे
सिझा पका,
हमने करी
खास लई तैयार !
इस लई से हमने
उन पन्नों को
एकसाथ साटा,
हमारे काले कोट वालों ने
उस पतंग को नाथा।
इस तरह इंसाफ की
तलवार को हमने
अपनी रसूख के धागे से काटा।
अब अपन हर साल,
साथ में पतंग उड़ाया करेंगे
कानून की किताब को
फुटपाथ समझ
उसपे अपनी
कार दौड़ाया करेंगे।
भले ही लोगों की आस्था
अदालतों में अब
नहीं रहे,
अपनी पतंगें
उड़ती रहेंगी
बस अपनी
दोस्ती बनी रहे !

अब सवाल उठता है
कि लोग क्या करें ?
बेहतर तो रहेगा
कि चुप ही रहें !
क्योंकि
वक़्त इस अन्याय पर भी
मिट्टी डाल देगा
और रही बात
पीड़ितों के हाय की
तो उसे
बीइंग ह्यूमन वाला चप्पल
कुचल देगा !  

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